Sunday, October 26, 2008

मुक्तक 13

चाहत बहन को कैसी यह भाई के साथ है
कैसा लगाव सारी हवेली के साथ है
बेटी नहीं है घर में तो रौनक कहाँ से हो
आँगन की जो बहार है बेटी के साथ है

चौखट पे जो दिया है, वो नारी की देन है
जो फूल खिल रहा है, वो नारी की देन है
नारी ने बचपने में घरौंदे बनाए हैं
घर की जो कल्पना है, वो नारी की देन है

बे-ओर छोर लाज की चादर भी देखिए
मुट्ठी में बंद है जो समंदर भी देखिए
जो मन की भावना है, उसे भी तो जाँचिए
हमको हमारे रूप से बाहर भी देखिए

आहट पे डाकिए की झपटकर मैं जाऊँगी
आएँगी जब घटाएँ तो आँसू बहाऊँगी
अगले बरस वो आएँगे, कह तो गए थे,
पर मैं इक बरस पहाड़-सा कैसे बिताऊँगी


डॉ. मीना अग्रवाल

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.


आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर काव्य।
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ।

श्यामल सुमन said...

बे-ओर छोर लाज की चादर भी देखिए
मुट्ठी में बंद है जो समंदर भी देखिए
जो मन की भावना है, उसे भी तो जाँचिए
हमको हमारे रूप से बाहर भी देखिए

अच्छी प्रस्तुति। कहते हैं कि-

जब समन्दर था तो नदियाँ आ के मिलती थी गले।
अब्र का टुकड़ा बना तो दर-ब-दर फिरता रहा।।

दीपावली की शुभकामनाएँ।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com