Monday, October 27, 2008

मुक्तक 14

अगर धड़कन हो दिल में दिल कभी पत्थर नहीं होता
हमारे दम से घर-आँगन कभी बंजर नहीं होता
हमें बचपन सिखाता है घरौंदे कैसे बनते हैं
अगर नारी नहीं होती तो बहनो , घर नहीं होता

सिर अपना धुन रहे थे , पता ही नहीं चला
कुछ स्वप्न बुन रहे थे , पता ही नहीं चला
एकांत में वो गाने लगी थी मिलन के गीत
तुम छिप के सुन रहे थे , पता ही नहीं चला

सोई हुई थी मैं कि उठा ले गया मुझे
झोंका था एक पल का बहा ले गया मुझे
भाई जो तुमने कहके पुकारा तो यों लगा
अनजान-सा दुलार बहा ले गया मुझे

अपनत्व की सुगंध सभी दामनों में है
कैसी अजीब दोस्ती हम-साइयों में है
रूठें कभी तो उसमें भी मन जाने की अदा
कैसा अजब ये प्यार यहाँ भाइयों में है

डॉ। मीना अग्रवाल

4 comments:

ghughutibasuti said...

बढ़िया ।
आपको व आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

आपको पढ़ना अच्छा लग रहा है. लिखते रहिये.

पुनः आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

श्यामल सुमन said...

अगर नारी नहीं होती तो कोई घर नहीं होता।
नहीं बचपन कहीं होता घरौंदे कैसे बन पाते?

दीपावली की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

docter mam , subah subah deemag ko doj dene ke liye aabhar
narayan narayan