Friday, October 17, 2008

मुक्तक 4

बच्चे के बिना जैसे हो आँगन सूना
आए न घटा फिरके तो सावन सूना
उम्मीद के पंछी से है मन में रौनक
आशा जो नहीं हो तो है जीवन सूना

चुक जाएगी इक रोज़ यह दौलत तेरी
रह जाएगी बाक़ी न ये ताक़त तेरी
भगवान से लेनी है तो हिम्मत ले ले
कुछ साथ अगर होगी तो हिम्मत तेरी

दरियाओं में बहता हुआ ठंडा पानी
चट्टान से मैदान तक आता पानी
स्वभाव में कोमल है मगर काट में तेज
पत्थर को बना देता है सुरमा पानी

डॉ. मीना अग्रवाल

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