Sunday, October 12, 2008

मुक्तक 1

पूरी हुई दुनिया की कहानी हमसे
अँगनाइयाँ आबाद हैं घर की हमसे
हम साथ रहेंगी तो उजाला होगा
है रोशनी आधी संसार की हमसे

सूरज की चमकार सिर्फ गनन में कब है
सीमित कोई महकार चमन में कब है
अपनत्व से बन जाती दुनिया अपनी
जो बात प्रेम में है वो धन में कब है
डॉ. मीना अग्रवाल

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