Wednesday, January 21, 2009

मुक्तक 32

तपन बढ़ी है तो तन-मन जला है अब के बरस
शरद की रुत में भी सूरज तपा है अब के बरस
चला गया है जो अश्कों को पोंछने वाला
हमारी आँखों में सूखा पड़ा है अब के बरस

वह अब तो शाम को घर लौटकर नहीं आता
उसे मिली भी जो मंज़िल तो इतनी दूर मिली
सुना है पार समुंदर, पराए देश में है
जो उसने नौकरी ढूँढी तो कितनी दूर मिली

डॉ. मीना अग्रवाल

Thursday, January 8, 2009

नववर्ष मंगलमय हो

नववर्ष की अनंत शुभकामनाएँ--

नए वर्ष की नई दिशा हो
नई कामना, नई आस हो
नई भावना, नई सोच हो
नई सुबह की नई प्यास हो
नई धूप हो, नई चाँदनी
नई सदी का नव विकास हो
नया प्रेम औ' नया राग हो
हर सुख अपने आसपास हो
नई रौशनी, नई डगर हो
नया खून औ' नई श्वास हो
नया रूप औ' नव जुनून हो
मन में बसती नव मिठास हो
नए सपन हों, नई शाम हो
रंग-बिरंगा कैनवास हो
नए फूल औ' नई उमंगें
अंतर्मन में नव सुवास हो !

डॉ. मीना अग्रवाल