Sunday, October 19, 2008

मुक्तक 6

रोगों के लिए जग में दवा तो होती
सबके लिए अधरों पे दुआ तो होती
अंबार अगर धन का लगा तो क्या है
आँखों में तरस, दिल में दया तो होती

घर शाम पड़े लौटके आना अच्छा
हो सुब्ह तो सोते को जगाना अच्छा
भीतर की विषमता से शिकायत अच्छी
अपनों से मिले दुख को भुलाना अच्छा

सब लक्ष्य हैं, आयाम हैं अपने-अपने
संसार में आराम हैं अपने-अपने
औरों का कोई काम भी करना सीखो
होने को बहुत काम हैं अपने-अपने

यह स्वप्न न देखो कि दुनिया बदले
अच्छा हो कि जीवन का तरीका बदले
भगवान को विपदा के लिए दोष न दो
हम आप जो बदलें तो विधाता बदले

डॉ. मीना अग्रवाल

2 comments:

डा गिरिराजशरण अग्रवाल said...

Maine Aapke muktak pade. ye mukta jeevan ki vaastivikta ko prakat karte hain. Niranta likhti rahen.
Giriraj Sharan Agrawal

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.