Monday, November 17, 2008

मुक्तक 27

हमको अपने बराबर न तोला कभी
यह पुराना तरीक़ा न बदला कभी
दिल की धड़कन से गीतों की धुन फूटती
पति शासक नहीं, मित्र बनता कभी

अपने भेदों की गुत्थी न खोलेगे तुम
बस अँधेरे में रस्ता टटोलोगे तुम
घर में फिर लौटकर देर से आओगे
जानती हूँ कि फिर झूठ बोलोगे तुम

डॉ. मीना अग्रवाल