जो चमक है सो है धन के अंबार की
किसको चिंता है अब अपने उद्धार की
लड़कियाँ किसलिए बोझ बनने लगीं
क्यों ये दूल्हे हुए वस्तु बाज़ार की
तुमसे कोमल यह रेशम की चादर नहीं
तुमसे बढ़कर तो गहरा समंदर नहीं
यों तो पत्नी भी, बेटी भी, बहनें भी हैं
माँ से बढ़कर कोई रूप सुंदर नहीं
वर की मंडी में लगती रहीं बोलियाँ
कोई दो लाख का, कोई नौ लाख का
क्या कहूँ, जल के वो किसलिए मर गई
कल जो गुड़िया-सी थी, ढेर है राख का
कुछ तो दुनिया का नक़्शा नया चाहिए
कुछ तो माहौल बदला हुआ चाहिए
मुझको चाहत है जीवन में हमदर्द की
उसको साथी नहीं, सेविका चाहिए
डॉ. मीना अग्रवाल
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3 comments:
bahut khub
बहुत सुन्दर!!
यों तो पत्नी भी,बेटी भी बहन भी हैं
माँ से बढ़ कर कोई रूप सुंदर नहीं
बहुत सुंदर !
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