Friday, February 12, 2010

मुक्तक 33

वह अपनी आँखों में उमड़ी घटाएँ भेजती है
वह अपने प्यार की ठंडी हवाएँ भेजती है
कभी तो ध्यान के हाथों,कभी पवन के साथ
वह माँ है, बेटे को शुभकामनाएँ भेजती है ।

वे भोली-भाली-सी शक्लें भी साथ रहती हैं
सुनी सुनाई-सी बातें भी साथ रहती हैं
अकेले आए थे परदेस में, मगर यह क्या ?
गली- मुहल्ले की यादें भी साथ रहती हैं .

6 comments:

Udan Tashtari said...

सुन्दर मुक्तक!

महाशिवरात्री की आपको बहुत शुभकामनाएँ.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत प्रभावशाली मुक्तक हैं...बधाई

रानीविशाल said...

बहुत सुन्दर मुक्तक!
महाशिवरात्री की शुभकामनाएँ!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

परमजीत सिहँ बाली said...

बढ़िया मुक्तक!!

संगीता पुरी said...

वाह .. बहुत बढिया !!

Randhir Singh Suman said...

nice