दया पे जीना किसी की मुझे गवारा नहीं
मैं अपने आपमें पर्वत हूँ, जल की धारा नहीं
अकेली होके भी दुर्बल नहीं रही हूँ मैं
तुम्हारा साथ मुझे चाहिए, सहारा नहीं !
अलकों से अगर छाए अँधेरे तो क्या
नयनों से जो फूटे सवेरे तो क्या
संसार को कुछ प्रेम का रंग भी तो दे दें
चुनरी ने अगर रंग बिखेरे तो क्या !
होली की अनंत शुभ कामनाओं के साथ--
डॉ. मीना अग्रवाल
Friday, February 26, 2010
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5 comments:
आपको भी होली पर्व की नेक रंगकामनाएं।
सुन्दर मुक्तक!
Aapko bhi holi ki haardik shubhakaamane!!
बेहतरीन आत्मविश्वास छलकाते मुक्तक!!
होली मुबारक.
अलकों से अगर छाए अँधेरे तो क्या
नयनों से जो फूटे सवेरे तो क्या
संसार को कुछ प्रेम का रंग भी तो दे दें
चुनरी ने अगर रंग बिखेरे तो क्या !
मीना जी बहुत अच्छा सन्देश दिया है रचना के माध्यम से। होली की शुभकामनायें। अगर वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें तो कमेन्ट देने वालों को सुविधा रहती है।
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