अजीब बात है पहले पहल की चाहत में
तुम्हारे झूठ भी सच की तरह-से लगते थे
मैं अब अकेले में यह सोच-सोच हँसती हूँ
तुम्हारे पास लुभाने को कितने सपने थे
मेरे ध्यान के एलबम में चित्र हैं तेरे
बुझी नहीं है तेरी दीपिका जलाई हुई
नयन से दूर है, मन के करीब लगती है
पराई होके भी बेटी कहाँ पराई हुई
डॉ. मीना अग्रवाल
Tuesday, December 9, 2008
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2 comments:
दोनों मुक्तक बहुत बढिया हैं। बधाई।
बेहतरीन!!
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