Tuesday, December 9, 2008

मुक्तक 31

अजीब बात है पहले पहल की चाहत में
तुम्हारे झूठ भी सच की तरह-से लगते थे
मैं अब अकेले में यह सोच-सोच हँसती हूँ
तुम्हारे पास लुभाने को कितने सपने थे

मेरे ध्यान के एलबम में चित्र हैं तेरे
बुझी नहीं है तेरी दीपिका जलाई हुई
नयन से दूर है, मन के करीब लगती है
पराई होके भी बेटी कहाँ पराई हुई

डॉ. मीना अग्रवाल

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

दोनों मुक्तक बहुत बढिया हैं। बधाई।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!