मैं कि हूँ उसके भीतर से परिचित बहुत
जानती हूँ तो कहती हूँ विश्वास से
उसकी आँखों में होगा कोई और भी
जब वह जाएगा उठकर मेरे पास से !
क्या ये पहलू समर्पण न कहलाएगा
क्या कोई इसका मतलब समझ पाएगा
हम बनाएँगी औ' सोचती जाएँगी
क्या यह पकवान उनको पसंद आएगा !
डॉ. मीना अग्रवाल
Tuesday, November 18, 2008
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1 comment:
bahut khub
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