शांत होती हुई-सी प्यास मिली
रुत बहारों की आस-पास मिली
मिट गया ज़िंदगी का कड़वापन
उसकी बातों में वह मिठास मिली
ज़िंदगी से मुझे मुहब्बत है
चाहे जाने में मुझको राहत है
तुम ज़रूरत को प्यार कहते हो
प्यार लेकिन मेरी ज़रूरत है
रीत भी है, चलन भी है इसमें
शुद्ध मन का सुमन भी है इसमें
सिर्फ़ धागा नहीं है ' राखी ' में
लाड़ भी है, वचन भी है इसमें
आप परदेस से नहीं लौटे
पाई हमने विजय अँधेरों पर
फिर से दीपावलि का पर्व आया
दीप जलने लगे मुँडेरों पर
डॉ. मीना अग्रवाल
Friday, October 31, 2008
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4 comments:
आप परदेस से नहीं लौटे
पाई हमने विजय अँधेरों पर
फिर से दीपावलि का पर्व आया
दीप जलने लगे मुँडेरों पर
kitni sunder baat kah di aapne
ज़िंदगी से मुझे मुहब्बत है
चाहे जाने में मुझको राहत है
तुम ज़रूरत को प्यार कहते हो
प्यार लेकिन मेरी ज़रूरत है.
सुंदर मुक्तके है. मुक्तके दिल से लिखी और सुनी जाती हैं .हम सब तक इन मुक्तकों को पहुचाने के लिए धन्यवाद . .कभी फुरसत मिली तो कुछ मुक्तके मै भी आप सब को सादर प्रस्तुत करूंगा .
आप परदेस से नहीं लौटे
पाई हमने विजय अँधेरों पर.
इन मुक्तकों को पहुचाने के लिए धन्यवाद
मिट गया ज़िंदगी का कड़वापन
उसकी बातों में वह मिठास मिली
वाह क्या प्रेम है.
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