यों तो गिनती में मेरे बेटे को
मुझसे बिछुड़े ये तीसरा दिन है
मैं जो माँ हूँ तो ऐसा लगता है
जैसे हर दिन पहाड़-सा दिन है
सर से आँचल ढलक गया है मेरा
माँ अगर देखती तो क्या कहती
खा के मुझसे न बोलने की क़सम
रूठ जाती, बुरा-भला कहती
भाइयों ने भुला दिया है मुझे ?
मैं परेशान होने लगती हूँ
जब भी आती है मायके की याद
घर में छिप-छिप के रोने लगती हूँ
घटा बंजरों को भिगोती है देखो
समुंदर की सीपी में मोती है देखो
निराश इतनी होकर न बैठो सहेली
विकलता में आशा भी होती है देखो
डॉ. मीना अग्रवाल
Thursday, October 30, 2008
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1 comment:
भावुक कर देने वाली हृदय स्पर्शी रचना............
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