काका हाथरसी के परिवार में जन्म हुआ. अतः मैं बचपन से ही साहित्य से जुड़ी रही .मैंने जब होश सँभाला तो बेटी और बेटे में फर्क़ देखा.बड़ी हुई तो समाज की विसंगतियों से परिचय हुआ. मेरा लेखन अबाध गति से चलने लगा. ईश्वर की कृपा से दो कलाकार बेटियों की माँ बनी. दो बेटों के रूप में दो योग्य दामाद मिले. साथ ही दुख-सुख में साथ देने के लिए दो नए परिवारों से नाता भी जुड़ गया.पति भी जाने-माने साहित्यकार हैं. हम दोनों मिलकर शोधदिशा पत्रिका का संपादन तथा अनेक साहित्यिक ग्रंथों की रचना कर रहे हैं.कविता, कहानी, हाइकु एवं संगीत पर पुस्तकें छपी हैं. निरंतर लेखन से जुड़े रहने का प्रयास करती हूँ. अभी तो सीख ही रही हूँ. आगे भी सीखती ही रहूँ मेरी यही इच्छा है और यही जीवन की आकांक्षा भी.
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