अगर धड़कन हो दिल में दिल कभी पत्थर नहीं होता
हमारे दम से घर-आँगन कभी बंजर नहीं होता
हमें बचपन सिखाता है घरौंदे कैसे बनते हैं
अगर नारी नहीं होती तो बहनो , घर नहीं होता
सिर अपना धुन रहे थे , पता ही नहीं चला
कुछ स्वप्न बुन रहे थे , पता ही नहीं चला
एकांत में वो गाने लगी थी मिलन के गीत
तुम छिप के सुन रहे थे , पता ही नहीं चला
सोई हुई थी मैं कि उठा ले गया मुझे
झोंका था एक पल का बहा ले गया मुझे
भाई जो तुमने कहके पुकारा तो यों लगा
अनजान-सा दुलार बहा ले गया मुझे
अपनत्व की सुगंध सभी दामनों में है
कैसी अजीब दोस्ती हम-साइयों में है
रूठें कभी तो उसमें भी मन जाने की अदा
कैसा अजब ये प्यार यहाँ भाइयों में है
डॉ। मीना अग्रवाल
Monday, October 27, 2008
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4 comments:
बढ़िया ।
आपको व आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती
आपको पढ़ना अच्छा लग रहा है. लिखते रहिये.
पुनः आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
अगर नारी नहीं होती तो कोई घर नहीं होता।
नहीं बचपन कहीं होता घरौंदे कैसे बन पाते?
दीपावली की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
docter mam , subah subah deemag ko doj dene ke liye aabhar
narayan narayan
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