गहनता को कब मेरी पाया है किसने
मेरे सच को दरपन दिखाया है किसने
मैं ' माँ ' हूँ मुझे कोई इतना बताए
मेरे दूध का ऋण चुकाया है किसने
ये आशाएँ मुझसे हैं, अरमान मुझसे
जगत में है जीवन का वरदान मुझसे
न होती तो उसको भी उपमा न मिलती
गगन पर है चंदा की पहचान मुझसे
मेरे हर क़दम से है राहत तुम्हारी
मेरे हाथ गढ़ते हैं किस्मत तुम्हारी
मुझे रूप में माँ के देखो तो समझो
मेरे पाँव नीचे है जन्नत तुम्हारी
ये सब चाँद-तारे हमारे लिए हैं
ये सब गीत-गाने हमारे लिए हैं
न हों हम तो ये फूल-कलियाँ निरर्थक
ये बेले के गजरे हमारे लिए हैं
डॉ. मीना अग्रवाल
Friday, October 24, 2008
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7 comments:
सुन्दर मुक्तक है डॉ साहिबा।
पर मुक्तक पढ़ते समय एक बात जहन घूम गई कि माँ तो वह है जो कभी भी अपने त्याग- बलिदान या ऋण की चर्चा नहीं करती। फिर आज एक माँ .......
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक
गहनता को कब मेरी पाया है किसने
मेरे सच को दरपन दिखाया है किसने
मैं ' माँ ' हूँ मुझे कोई इतना बताए
मेरे दूध का ऋण चुकाया है किसने
बहुत khobsorat लाइन हैं सचमुच माँ का क़र्ज़ कौन उतार सकता है ?
माँ तो माँ है उसका क्या है ,
जग में उससे कौन बड़ा है .
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.
डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!
Maa...what a nice name???
Bahut sundar likha hai...Dr. keep it up???
Diwali ki Shubhkamnao sahit....
wah kya baat hai. bhala ma se bhee unch sthan kisi ka ho sakta hai kya
" ghar ke jhine risto ko so so bar udhadte dekha, chupke chupke kar deti hai jane kab turpai amma"
Very Nice Ma'am. ब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. दूसरों को राह दिखाते रहिये. आगे बढ़ते रहिये, अपने साथ-साथ औरों को भी आगे बढाते रहिये. शुभकामनाएं.
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साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.
आपका स्वागत है. साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद
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