हमको दुनिया का अंदाज़ भाया नहीं
पथ बदलना कभी हमको आया नहीं
जब शपथ लेके हमने किसी हाथ में
अपना आँचल दिया तो छुड़ाया नहीं
कहते-सुनते ही नीरस कहानी हुई
धुँधली-धुँधली-सी हर इक निशानी हुई
लाख सोचा सुहागिन ने, समझी नहीं
साल में क्यों ये संगत पुरानी हुई
डॉ. मीना अग्र्वाल
Monday, December 1, 2008
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5 comments:
जब शपथ लेके हमने किसी हाथ में
अपना आँचल दिया तो छुड़ाया नहीं
वाह....बहुत अच्छे मुक्तक हैं...आप कमाल का लिखती हैं...बधाई..
नीरज
आपके मुक्तक अच्छे हैं
हमको दुनिया का अंदाज़ भाया नहीं
पथ बदलना कभी हमको आया नहीं
जब शपथ लेके हमने किसी हाथ में
अपना आँचल दिया तो छुड़ाया नहीं
अच्छे मुक्तक हैं बधाई..
जब शपथ लेके हमने किसी हाथ में
अपना आँचल दिया तो छुड़ाया नहीं
आप अपना पूरा परिचय मुझे भेजती तो मुझे आपको प्रकाशित कर के अच्छा लगता।
शम्भु चौधरी
बेहतरीन मुक्तक !
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