अजीब बात है पहले पहल की चाहत में
तुम्हारे झूठ भी सच की तरह-से लगते थे
मैं अब अकेले में यह सोच-सोच हँसती हूँ
तुम्हारे पास लुभाने को कितने सपने थे
मेरे ध्यान के एलबम में चित्र हैं तेरे
बुझी नहीं है तेरी दीपिका जलाई हुई
नयन से दूर है, मन के करीब लगती है
पराई होके भी बेटी कहाँ पराई हुई
डॉ. मीना अग्रवाल
Tuesday, December 9, 2008
Monday, December 1, 2008
मुक्तक 30
हमको दुनिया का अंदाज़ भाया नहीं
पथ बदलना कभी हमको आया नहीं
जब शपथ लेके हमने किसी हाथ में
अपना आँचल दिया तो छुड़ाया नहीं
कहते-सुनते ही नीरस कहानी हुई
धुँधली-धुँधली-सी हर इक निशानी हुई
लाख सोचा सुहागिन ने, समझी नहीं
साल में क्यों ये संगत पुरानी हुई
डॉ. मीना अग्र्वाल
पथ बदलना कभी हमको आया नहीं
जब शपथ लेके हमने किसी हाथ में
अपना आँचल दिया तो छुड़ाया नहीं
कहते-सुनते ही नीरस कहानी हुई
धुँधली-धुँधली-सी हर इक निशानी हुई
लाख सोचा सुहागिन ने, समझी नहीं
साल में क्यों ये संगत पुरानी हुई
डॉ. मीना अग्र्वाल
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