यदि हम सच्चे मन से देखें तो बहू और बेटी में कोई
अंतर नहीं है.जो बेटी है वह दूसरे घर की बहू है और
जो बहू है वह अपनी माँ की बेटी भी है. यदि हम इस
सत्य को जान लें तो बहू-बेटी के बीच का अंतर ही मिट
जाएगा.जो बहू-बेटी में अंतर नहीं करते हैं और बहू को
बेटी समझते हैं वे कभी दुखी नहीं रहते.उनका मानना
यही है---
यहाँ माँ अपनी बेटी को,तो सासें अपनी बहुओं को
जो पुश्तों से सुरक्षित था,वो ज़ेवर सौंप जाती हैं
विरासत में जिसे ज़ेवर कहें वह तो बहाना है
जो सच पूछो तो ममता की धरोहर सौंप जाती है.
डॉ.मीना अग्रवाल
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2 comments:
बहुत बहुत ही सार्थक भाव की पंक्तियाँ। वाह।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बेहतरीन लगे मुक्तक!
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