Wednesday, March 3, 2010

मुक्तक 35

समय के हाथ में जीवन का आसरा हम हैं
कला की जान हैं, कविता की आत्मा हम हैं
इक एक रूप के पीछे हमारे रूप अनेक
परी हैं, देवी हैं, नारी हैं, अप्सरा हम हैं !

किसी को हाल जो भीतर का है पता न चले
किसी को दर्द के एहसास की हवा न लगे
दुखों को सहने का ढब जानती हैं बालाएँ
उदास होके भी चेहरा उदास-सा न लगे !

डॉ. मीना अग्रवाल

2 comments:

शोभा said...

अति सुन्दर।

रानीविशाल said...

Waah! behad khubsurat!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/